किसी राष्ट्र के विकास पर आर्थिक, सामाजिक, मानव संसाधन, पर्यावरण जैसे विभिन्न कारकों का प्रभाव पड़ता है, जो एक-दूसरे से जुड़े रहते हैं। इनमें से प्रत्येक मानदंड स्वयं में महत्वपूर्ण है। इन कारकों के अलग-अलग मिश्रण के कारण अधिकतर विकासशील देशों के सामने विकास से जुड़ी अलग-अलग चुनौतियां खड़ी होती हैं। आर्थिक विकास और सामाजिक विकास साथ-साथ होते हैं। कृषि, उद्योग, व्यापार, परिवहन, सिंचाई, ऊर्जा संसाधन आदि में सुधार से आर्थिक सुधार के संकेत मिलते हैं और स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास, पेयजल आदि में सुधार की प्रक्रिया सामाजिक सुधार की दिशा में इंगित करती है। दोनों ही प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जनता की वित्तीय स्थिति से संबंधित हैं।
आर्थिक वृद्धि को अधिक समावेशी बनाने के लिए उसके आधार को व्यापक बनाने और वृद्धि की प्रक्रिया से मिलने वाले लाभों को साझा करने की जरूरत हमेशा से महसूस की गई है। समावेशी वृद्धि का अर्थ ऐसी आर्थिक वृद्धि है, जो सुखी बनाने के लिए बुनियाद में सुधार कर मूलभूत जरूरतों को पूरा करे और साथ ही अवसर भी सृजित करे। इसमें समान अवसर प्रदान करना और शिक्षा तथा कौशल विकास के माध्यम से लोगों को सशक्त बनाना शामिल है।क रूप से विकलांग लोगों के जीवन को बेहतर बनाया है। मानसिक विकलांगता वालों को भी समाज में उनकी आवश्यकताओं के संबंध में अधिक स्वीकार्यता एवं प्रतिक्रिया होने से लाभ हुआ है।
1.2 अरब की विविधता भरी जनसंख्या वाले देश में वृद्धि के स्तरों को समाज के सभी वर्गों तथा देश के सभी भागों तक ले जाना सबसे बड़ी चुनौती है और यहीं सरकार की भूमिका आरंभ होती है। इस प्रकार सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों को इन सभी मानदंडों पर विकास के लिए तैयार होना होगा। योजनाकारों एवं नीति निर्माताओं को इस बात का ध्यान रखना होगा कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) और प्रति व्यक्ति आय देश की जनता का विकास सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। कुशल मानव संसाधन किसी भी समाज के विकास की पहली इकाई होता है। सभी के लिए, गरीब से गरीब बच्चे और बेहद दुर्गम इलाके में रहने वाले बच्चे के लिए भी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित कर मानव संसाधन का विकास करना उतना ही जरूरी है, जितना सभी के लिए आजीविका सुनिश्चित करना। अब पर्यावरण के मुद्दों को भी विकास के पैमानों की सूची में जोड़ दिया गया है क्योंकि जलवायु परिवर्तन को किसी राष्ट्र के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में महत्वपूर्ण कारक माना जाता है। सूखा एवं बाढ़ की आपदाएं किसानों की अर्थव्यवस्था के साथ ही सामाजिक ढांचे को भी नुकसान पहुंचा सकती हैं और सरकार को उनसे प्राथमिकता के साथ निपटना होगा।
सरकार की कई हालिया नीतियों एवं कार्यक्रमों का प्रयास सबसे निचले तबके के आम आदमी तक पहुंचना रहा है। कृषि एवं किसानों के कल्याण के लिए भारी बजटीय आवंटन किया गया है और समाज के अलग-थलग किए गए वर्गों को मुख्यधारा में लाने और उन्हें तेज आर्थिक वृद्धि के लाभ उठाने लायक बनाने के लिए प्रधानमंत्री जन धन योजना, मुद्रा बैंक, सेतु, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ जैसे कई कार्यक्रम आरंभ किए गए हैं। देश में पर्याप्त और टिकाऊ सुरक्षा नेटवर्क तैयार करने की मंशा से प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना, प्रधानमंत्री जीवन सुरक्षा योजना और अटल पेंशन योजना आरंभ की गई हैं। बुनियादी ढांचा, चाहे मकान हों, सड़क हों, रेलवे हो अथवा ग्रामीण बुनियादी ढांचा हो, सभी प्रत्येक नागरिक के जीवन को करीब से छूता है और इसीलिए वह उस महत्व का हकदार है, जो उसे दिया जा रहा है। आम आदमी तक विकास के लाभ सुनिश्चित करने के लिए प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) जैसे कार्यक्रमों के जरिए ई-प्रशासन पर भी सरकार का जोर रहा है। रोजगारपरकता के लिए महत्वपूर्ण कौशल विकास, उद्यमशीलता के लिए स्टार्ट अप इंडिया एवं स्टैंड अप इंडिया जैसे कार्यक्रमों ने सबका विकास का लक्ष्य प्राप्त करने में मदद की है।
विकास के लाभ तभी प्राप्त किए जा सकते हैं, जब नागरिकों का स्वास्थ्य अच्छा रहे। पूरा विश्व स्वास्थ्य के लिए योग के लाभों को महसूस कर रहा है और हर वर्ष 21 जून को अब अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाया जा रहा है। राष्ट्र के रूप में भारत ने योग को दुनिया के हरेक कोने तक ले जाने में बहुत अहम भूमिका निभाई है।
भारत निर्भरता और बेहद निर्धनता के उन दिनों से बहुत दूर आ चुका है, जिन दिनों खाद्य का आयात करना पड़ता था, रोजगार की भारी किल्लत थी और कुपोषण तथा रोग हमारे मानव संसाधन को नष्ट कर रहे थे। स्वतंत्रता के छह दशक से भी ज्यादा समय बाद अब भारत ऐसी स्वतंत्र ताकत बन गया है, जिसे गंभीरता से लिया जाता है। अब भारत प्रगति करता राष्ट्र है।
|