कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का विशालतम क्षेत्र है। इस क्षेत्र ने वर्ष 2014-15 में समग्र सकल मूल्य वर्धन में 16.1 प्रतिशत (नई श्रृंखला के अंतर्गत वर्ष 2011-12 के मूल्यों पर आधारित) योगदान दिया था। आर्थिक संकेतकों के अतिरिक्त, यह क्षेत्र सामाजिक सुरक्षा के लिए खाद्य और पोषण तथा रोजगार के संदर्भ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, जो वह विशाल जनसंख्या और ग्रामीण श्रम शक्ति को उपलब्ध कराता है। इस क्षेत्र में रोजगार से जुड़े श्रम बल के अंश में वर्ष 1993-94 में 64.8 प्रतिशत से लेकर वर्ष 2011-12 में 48.9 प्रतिशत तक की कमी आई है, लेकिन इसके बावजूद यह विशाल संख्या में लोगों को रोजगार देता है, हालांकि औद्योगिक और सेवा जैसे अन्य क्षेत्रों में कार्यरत श्रमिकों की तुलना में कृषि क्षेत्र से होने वाली आमदनी बहुत कम है।
किसानों और कृषि क्षेत्र को अक्सर उत्पादन से संबंधित बदलावों और मूल्य की अस्थिरता जैसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ता है। जलवायु परिवर्तन की वजह से होने वाली मौसम की असामान्यताएं बढ़ रही हैं और मौसम की असामान्य स्थितियों के कारण अक्सर सामान्य संस्थागत सहायता अपर्याप्त और कम पड़ जाती है। भारत में मौसम की ऐसी असामान्य स्थितियां बढ़ रही हैं और इनकी वजह से लाखों किसान परिवारों के कल्याण के लिए मजबूत प्रयास किया जाना बेहद आवश्यक हो गया है। किसानों के कल्याण के मामले पर आगे बढ़ने से पहले कई पहलुओं पर गौर किया जाना आवश्यक है। जब किसानों के कल्याण के उपाय सही दिशा में बढ़ेंगे, तो उनके साथ ही साथ औद्योगिकीय सुधारों और प्रौद्योगिकी के सृजन और उसके हस्तांतरण के उपायों को भी साथ लेकर चलना होगा, ताकि किसानों को ज्यादा आमदनी उपलब्ध कराई जा सके और साथ ही साथ अनाज और अन्य जिंसों की बढ़ती मांग पूरी की जा सके। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2020-21 तक अनाज की अनुमानित मांग 277 मिलियन और तिलहनों की मांग 71 मिलियन तक पहुंच जाएगी। यूं तो अनाज और खाद्यान्न में वृद्धि की मौजूदा स्थिति के साथ इस मांग के पूरा हो जाने की संभावना है, लेकिन दलहन में कुछ कमी और सब्जियों/खाद्य तेलों में बेतहाशा कमी होने का अंदेशा है, जहां घरेलू खपत से जुड़ी करीब 60 प्रतिशत जरूरतें आयात के माध्यम से पूरी होती हैं।
उत्पादकता बढ़ाने, किसानों को लाभकारी मूल्य दिलाने और कृषि संबंधी दक्षता व व्यवसायिक विविधता को बढ़ावा देने के लिए बाजार तथा भूमि से संबंधित आवश्यक सुधारों द्वारा समुचित रूप से समर्थित उपायों से कृषि संबंधी विपदा से निपटने के लिए विकास के सम्मिलित प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। जोखिम में कमी लाने और विविध गतिविधियों द्वारा जोखिम में कमी और अनुकूलन और आमदनी में वृद्धि के लिए किसानों को सहायता देने सहित पूर्वी राज्यों को वैकल्पिक अनाज के कटोरे के रूप में विकसित करने के लिए संस्थाओं और डिलिवरी सिस्टम्स स्थापित करने पर विशेष ध्यान दिए जाने की भी आवश्यकता है। कृषक कल्याण सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों का आधार रहा है। सरकार ने किसानों की समस्याओं का निराकरण करने और उनके कल्याण के लिए कई नवाचार और नए दृष्टिकोण वाले समाधान प्रारंभ किए हैं।
एक ओर जहां इनमें सिंचाई के अंतर्गत अधिक क्षेत्रफल और अच्छी इनपुट की उपलब्धता संबंधी सहायता देना शामिल है, वहीं दूसरी ओर, फसल बीमा, राष्ट्रीय कृषि मंडी और मूल्य स्थिरता जैसे प्रोत्साहनों के जरिए किसानों को फसल नाकाम रहने और मूल्य अस्थिरता के जोखिमों के विपरीत अधिकार सम्पन्न बनाने पर ज्यादा ध्यान दिया गया है। उच्च मूल्य वाली ऑर्गेनिक खेती, परंपरागत खेती और मवेशी तथा मत्स्यपालन सहित खेतीबाड़ी की विविधता सरकार के शीर्ष एजेंडे पर हैं। इसके अलावा, किसानों को नवीनतम प्रौद्योगिकियों और विपणन के अवसरों से अवगत कराने के लिए कृषि के समस्त पहलुओं के बारे में बेहतर जानकारी प्रदान करने का कार्य एक समर्पित टीवी चैनल डीडी किसान के माध्यम से किया जा रहा है। पिछले दो वर्षों में अनेक चुनौतियों से निपटने और देश के लाखों किसानों के कल्याण के लिए सरकार द्वारा कई योजनाएं और कार्यक्रम प्रारंभ किए गए हैं। |