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DETAIL STORY
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मुख्य लेख
सशक्तीकरण से संवृद्धि चरण सिंह |
भारत की गिनती दुनिया में सबसे तेजी से विकास कर रहे देशों में होती है। कोई भी विकास तब तक अधूरा है जब तक समाज के हर वर्ग तक उसका लाभांश पहुंच न जाए। उसी को ध्यान में रखकर समाज के हर वर्ग के वित्तीय समावेशन के लिए अनेकानेक कदम उठा रही है। कृषक, छात्र, उद्यमी, कारोबारी आदि सभी को एक समान वित्तीय मंच पर लाने का यह प्रयास अभी शुरुआत पर है परंतु संकेत अच्छे दिख रहे हैं।
मई 2014 के बाद से केंद्र सरकार देश को सबल बनाने और विकास दर को 9 प्रतिशत से अधिक करने का प्रयास कर रही है। इसके बाद सरकार ने अनेक घोषणाएं कीं जिनके केंद्र में विकासोन्मुखी नीतियों के माध्यम से विकास की उच्च दर प्राप्त करना था। लगभग आठ शताब्दियों तक विदेशी शासन के अंतर्गत भारत ने संसाधनों के अभाव और आर्थिक विकास की निम्न दर (प्रति व्यक्ति) जैसी समस्याओं का सामना किया है। 1951 में देश की 53 प्रतिशत आबादी (20 करोड़ लोग) गरीबी रेखा से नीचे रहने को विवश थे। भारत एक निम्न आबादी वाला देश माना जाता था। आजादी के बाद के दौर में मिश्रित अर्थव्यवस्था स्वीकार की गई जहां समाजवादी अवधारणा प्रबल थी। अनेक प्रकार की योजनाओं और नीतिगत उपायों के बाद, जिनमें से कुछ गंभीर संकट के कारण स्वीकृत किए गए थे, भारत बीसवीं सदी के प्रारंभ में एक महत्वपूर्ण और उभरती हुई बाजार अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा। तत्पश्चात् 2015 के बाद से भारत दुनिया की सबसे तेजी से उभरती विकास अर्थव्यवस्था बना है। यहां संशोधित और उच्च मानकों के बावजूद गरीबी का स्तर कम हुआ है। अब देश की 30 प्रतिशत आबादी निर्धन है। अगले 5 वर्षों में देश की वृद्धि दर 7.3 प्रतिशत से भी अधिक होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
वैसे भारत के विकास की कहानी बहुत रोचक है और आर्थिक इतिहास अप्रत्याशित रहा है। एक समय वह भी था जब देश के विकास में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी कम थी और सेवा क्षेत्र की अधिक। दूसरी तरफ उद्योग क्षेत्र की हिस्सेदारी लगभग 25 प्रतिशत के साथ स्थिर बनी हुई थी। विकास की स्थिरता को सुनिश्चित करने के लिए यह महत्वपूर्ण था कि औद्योगिक आधार मजबूत किया जाए। इसलिए प्रधानमंत्री ने मई, 2014 में पद ग्रहण करने के तत्काल बाद मेक इन इंडिया अभियान का शुभारंभ किया।
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झरोखा जम्मू कश्मीर का : कश्मीर में रोमांचकारी
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