भारत में पर्यावरण कानून काफी समृध्द और विकसित है| भारतीय संविधान विश्व के उन गिने-चुने संविधानों में से एक है, जिनमें पर्यावरण सरंक्षण के प्रावधान भी दिए गए हैं| 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के ज़रिये संविधान में जोड़ी गई धाराओं 48ए और 51ए(जी) के अंतर्गत पर्यावरण सरंक्षण का दायित्व राज्य और उसके नागरिकों पर डाला गया है| परंतु भारतीय पर्यावरण कानून का विकास टुकड़ो में हुआ है और यह अन्य कुछ घटनाक्रमों के फलस्वरूप प्रवर्तित हुआ है|
भारतीय पर्यावरण कानून के विकास के पीछे तीन घटनाओं की प्रमुख भूमिका रही है| स्टाँकहोम में 1972 में हुए संयुक्त राष्ट्र मानवीय पर्यावरण सम्मेलन ने पर्यावरण के क्षेत्र में अनेक कानूनों के निर्माण को दिशा प्रदान की| जल अधिनियम, वायु अधिनियम, वन सरंक्षण अधिनियम और पर्यावरण से संबंधित प्रावधानों को संविधान में सम्मिलित करना, इसके कुछ ज्वलंत उदाहरण है| भोपाल में 1984 में घटित गैस त्रासदी से भारतीय वैधानिक प्रणाली की अनेक खामियां सामने आई |
इस त्रासदी से पीड़ित लोग अमरीका और भारत की अदालतों में जो लड़ाइयां लड रहें हैं, वे इसी बात को साबित करतीं हैं| त्रासदी के फलस्वरूप अनेक कानून बनाए गए, जिनमें 1988 का पर्यावरण (सरंक्षण) अधिनियम सर्वाधिक महत्वपूर्ण है|
रियो सम्मेलन, जो वर्ष 1993 में हुआ, उससे भी भारत के पर्यावरण परिदरश्य में कुछ वैधानिक हरक़त होती दिखाई दी| जैव विविधता अधिनियम, 2002 सम्मेलन में अपनाए गए जैव विविधता अभिसमय (कन्वेंशन) को क्रियान्वित करने के लिए बनाया गया था| |